शिकारियों की संगीत सभा.
पिछली दफा सर्दीयों की छुट्टियों में जोधपुर जाना हुआ. असहनीय ठण्ड एंव रम की बोतलों के सहारे दिन मज़े से कट रहे थे. शाम पड़ी और नेक कार्य में मशरूफ होने की घडी आयी. सभी दोस्त घर की छत पर, चारपाइयों पर बैठ यहाँ वहां की अक्र्र बकर के साथ-साथ मौसम एंव मदिरा का लुत्फ़ उठा रहे थे. हर एक उपभोगता ने करीबन तीन चार पेग डाउन कीये होंगे, जब वीर (विराजमान मित्रों में से एक मित्र ) अपने बचपन की एक (हास्य विडम्बना भरी) कहानी सुनाने लगा.
कहने लगा कि, जब वह १२ साल का था, तो दूसरी दफा उसे पिताजी के साथ शिकार पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. वीर बहुत खुश, सुबह से करीबन १५-१६ दफा अपने पिताजी से यह कह चुका था कि- उसे बन्दूक चलाने एंव जंगली सूअर के शिकार में भागीदार बनने का मौका दिया जाये. अगर पिताजी के किसी दोस्त ने उसे बच्चा समझ आनाकानी की, या पिछली बार की तरह अगर किसी ने उसकी बांह पकड़ कर उसे जीप में बिठा दिया, तो अच्छा नहीं होगा... पिताजी ने मुस्कुराते हुए वीरू की तमाम शर्तों पर हाँ भर दी, तथा कहने लगे कि , दुपहर में अरावली के जंगलों की ओर रवानगी की जाएगी, साथ में हरी सिंह मामोसा (veer's uncle ) भी तशरीफ़ ला रहे है.
शाम ढल चुकी है ,जंगल के बीचों बीच सारे महानुभाव शत्रंजियाँ बिछाकर विराजमान हैं, तथा शिकार हेतु लायी हुई अपनी-अपनी बंदूकें बगल में रखकर, (बहादुरों ने) हातों में जाम पकडे हुए हैं. वीर अपने पिताजी की गोद में बैठ, बड़े बड़े तीरंदारों को शिकार के तौर तरीकों पर (केवल) टिपण्णीयां करते हुए सुन रहा है. जंगल में आये हुए अब ४ घंटे बीत चुके हैं, और शिकार करना तो दूर, उसके नाम तक का कोई ज़िक्र नहीं. बोत्त्लों पर खाली होती बोत्त्लें , ठहाकेदार मिजाज़ और पूर्वजों की गौरवशील गाथा. वीर की शिकार इच्छा दूसरी दफा खंडित होती नज़र आ रही थी.
शाम ढल चुकी है ,जंगल के बीचों बीच सारे महानुभाव शत्रंजियाँ बिछाकर विराजमान हैं, तथा शिकार हेतु लायी हुई अपनी-अपनी बंदूकें बगल में रखकर, (बहादुरों ने) हातों में जाम पकडे हुए हैं. वीर अपने पिताजी की गोद में बैठ, बड़े बड़े तीरंदारों को शिकार के तौर तरीकों पर (केवल) टिपण्णीयां करते हुए सुन रहा है. जंगल में आये हुए अब ४ घंटे बीत चुके हैं, और शिकार करना तो दूर, उसके नाम तक का कोई ज़िक्र नहीं. बोत्त्लों पर खाली होती बोत्त्लें , ठहाकेदार मिजाज़ और पूर्वजों की गौरवशील गाथा. वीर की शिकार इच्छा दूसरी दफा खंडित होती नज़र आ रही थी.
बेटे द्वारा बार-बार शिकार अनुरोध पर, नशे में धुत पिताजी ने बन्दूक उठाकर वीर को दे दी, तथा अपने साले साहब से कहने लगे "अरे सुंनो तो,.... एक आधा खरगोश मरवा लाओ,कम से कम इसे तस्सल्ली हो जाएगी ..कब से माथे की रेल कर रखी है इसने" पिताजी के इस कथन से वीर के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी . पिताजी की गोद से उठकर वह मामोसा की ओर बढ़ने लगा. .
मामोसा खुद नशे में धुत हैं, तथा बेसब्र व्यक्तित्व से जीप में कुछ ढून्ढ रहे हैं. अपने कद से भी लम्बी बन्दूक हात में पकडे हुए वीर हरी सिंह मामोसा के समीप बढ़ रहा है, तथा पिताजी द्वारा दिए गए आदेश को दोहरा रहा है. मामोसा बहुत परेशां हैं, तथा भांजे से थोडा वक़्त दे देने के लिए दरख्वास्त करतें हैं. वीर जीप में बैठकर अपने मामाश्री को कुछ ढून्ढते हुए देख रहा है . हरि सिंह मामोसा की तलाश खत्म होती है, तथा हात में एक पुराना केसेट लिए हुए वे विराजमान महानुभावों की तरफ हर्षोल्लास से बढने लगते हैं. महानुभावों को केसेट दिखाते हुए मामोसा (बलुन्दा ठाकर साहब की) जीप की तरफ बढतें लगते हैं. केसेट टेपरेकार्डर में डाल दी जाती है, और फरीदा खानुम जी का गया हुआ गाना "आज जाने की जिद न करो" शुरू होता है.
तमाम शिकारी संगीत पर मदमस्त हो रहे है.
करीबन चालीस दफा उस्सी गाने को सुना जा चूका है, एवं शराब भी ख़त्म होने को आयी है. स्तिथि ऐसी हो गयी थी कि- गलती से गर जंगली सूअर करीब से भाग जाये, तो भी शिकार या उसकी इच्छा को ज़ाहिर करने वाला एक भी शिकारी नहीं . और अगर भूले भटके कोई व्यक्ति शिकार की याद दिलाये तो, बहूमत शिकारी आखिरी बार फरीदा खानुम की आवाज़ सुनने की इच्छा ज़ाहिर कर , मसले को दबा देवे.
शिकार योजना से तब्दील हुई इस संगीत सभा में, भले ही सारा दोष शराब का हो, परन्तु इस बात में कोई दोहराय नहीं कि उस रात जरूर ऊपर वाला उन जंगली जीवों पर मेहरबान रहा होगा . :-/
मामोसा खुद नशे में धुत हैं, तथा बेसब्र व्यक्तित्व से जीप में कुछ ढून्ढ रहे हैं. अपने कद से भी लम्बी बन्दूक हात में पकडे हुए वीर हरी सिंह मामोसा के समीप बढ़ रहा है, तथा पिताजी द्वारा दिए गए आदेश को दोहरा रहा है. मामोसा बहुत परेशां हैं, तथा भांजे से थोडा वक़्त दे देने के लिए दरख्वास्त करतें हैं. वीर जीप में बैठकर अपने मामाश्री को कुछ ढून्ढते हुए देख रहा है . हरि सिंह मामोसा की तलाश खत्म होती है, तथा हात में एक पुराना केसेट लिए हुए वे विराजमान महानुभावों की तरफ हर्षोल्लास से बढने लगते हैं. महानुभावों को केसेट दिखाते हुए मामोसा (बलुन्दा ठाकर साहब की) जीप की तरफ बढतें लगते हैं. केसेट टेपरेकार्डर में डाल दी जाती है, और फरीदा खानुम जी का गया हुआ गाना "आज जाने की जिद न करो" शुरू होता है.
तमाम शिकारी संगीत पर मदमस्त हो रहे है.
करीबन चालीस दफा उस्सी गाने को सुना जा चूका है, एवं शराब भी ख़त्म होने को आयी है. स्तिथि ऐसी हो गयी थी कि- गलती से गर जंगली सूअर करीब से भाग जाये, तो भी शिकार या उसकी इच्छा को ज़ाहिर करने वाला एक भी शिकारी नहीं . और अगर भूले भटके कोई व्यक्ति शिकार की याद दिलाये तो, बहूमत शिकारी आखिरी बार फरीदा खानुम की आवाज़ सुनने की इच्छा ज़ाहिर कर , मसले को दबा देवे.
शिकार योजना से तब्दील हुई इस संगीत सभा में, भले ही सारा दोष शराब का हो, परन्तु इस बात में कोई दोहराय नहीं कि उस रात जरूर ऊपर वाला उन जंगली जीवों पर मेहरबान रहा होगा . :-/
haha umda hai :)
ReplyDeletedhanyawad
ReplyDelete'नेक कार्य' HA HA
ReplyDeletehey, hw u doing shishir
ReplyDeletepeta is happy:)
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