Thursday, March 7, 2013


वक़्त के साथ साथ सांस लेता हूँ मैं , उसे अलविदा कहने से डरता हूँ मैं।
खुशहाल वक़्त से पटती है मेरी; मैंने कई दफ़ा उससे थमने ठहरने की इल्तजा की है, और जब तब की है आज़ाब बरसे हैं, मान्सिक फ़ालिजों का दौर गुज़रा है। लाख कहो पर जुदा होने से इनकार करे, ग़मगीन करे; ऐसा वक़्त की हर लिहाज़ से बीमार करे।
मुझे मालूम है कि वक़्त मुझे एक अज्ञेय घड़ी छोड़कर आगे बढ़ जायेगा; अपने अर्धांग की ओर, जिसके लिए वो सदेव चलता रहा है, और सदेव चलता रहेगा- 'शून्य'

Wednesday, December 29, 2010

मोहसिन

मोहसिन और में एक ही विद्यालय में साथ पढ़ा करते थे. कक्षाएं भिन्न होने के बाईस विद्यालय में हमारे गुट अलग अलग थे. परन्तु मेरा पड़ोसी भी था, इसलिए शामें साथ ही कटा करती थीं. नम्मी कक्षा की अध्वार्शिक परीक्षाओं से फ़ारिग हो मोहसिन और मैं  जाड़ों की छुट्टियों का लुत्फ़ उठा रहे थे. सवेरे सवेरे कॉलोनी की कच्ची सड़क पर गुप्पी खोद हम लोग कंचे खेलने में मसरूफ़  हो जाते. फिर दुपहर का भोजन कर लट्टू घुमाने में जुट जाते, और दुपहर हल्की होते ही अपनी अपनी साइकिल ले सैर पर निकल जाते.
दुपहर गिरने लगी ही थी जब में लट्टू रखने और साइकिल की चाबी लेने घर के भीतर दाखिल हुआ. माँ छत्त पर बैठे स्वेटर बुन रही थी, पिताजी उस समय जयपुर में कार्यरत थे, और चेहरे पर मोटा ऐनक डाले बड़ा भाई स्टडी रूम में बैठा गणित के नुस्खों का रट्टा लगा रहा था. मैं छुट्टे पैसे जुगाड़ने हेतु आलो में तफ़्तीश करने लगा. मुड़कर देखा तो मोहसिन कमरे के भीतर था. में चौंकने की अभिव्यक्ति कर  पाता उससे पहले उसने दरवाज़ा बंद कर दीया  और मेरी जानिब कूद, मेरे ऊपर बैठ अपने कूल्हों को हिलाने लगा. मैंने बिगड़कर उसे ज़ोर से धक्का दीया; पर्तिक्रिया में शर्म हया तो छोड़ो, दांत और फाड़ कर हसने लगा. मैंने बिगड़ते हुए उसे एक और धक्का दीया और कमरे से बाहर खदेड़ दीया.
हम दोनों अपनी अपनी साइकिल ले युनिवरसिटी वाली सड़क की ओर सैर हेतू रवाना हो गए. क्या पुर्फिज़ा थी. सड़क पर ज़्यादातर हलचल शाम के सैर वाले लोगों की ही थी. एक आध स्कूटर गाडी दौड़ते दिख जाये तो गनीमत थी. जब भी कोई शीशों पर फिल्म चढ़ी गाड़ी गुज़रती थी, तो में और मोहसिन नज़र गड़ा उसे गुज़रते हुए देखा करते थे, और गौरतलब कीया करते थे कि उस गाड़ी में कोई लड़का-लड़की थे या नहीं. युनिवरसिटी क्वाटरों वाली रोड २ किमी. नापने के बाद हम युनिवरसिटी कैम्पस में दाखिल हो गए. कैम्पस में विद्यमान जिमखाना के ठीक पीछे एक पुराना स्टेडियम हुआ करता था. हमारी सैर का आधे से ज्यादा वक़्त इसी स्टेडियम के पास कैम्पस के उन छात्रों के इंतज़ार में बीता करता था, जो अक्सर अपनी प्रेमिकाओं को लेकर स्टेडियम के कंपाऊंड में आया करते थे, और इज़हारे-मोहब्बत कीया करते थे. मोहसिन और में किशोर अवस्था के धनी थे. ज़ाहिर है हमारी अनेक जिज्ञासाओं से मुक्तलिफ़ एक यह भी जिज्ञासा थी.
इस युनिवरसिटी का क्षेत्रफल अधिक होने के कारण और निर्माण कम होने के बाईस जगह का फ़ैलाव अधिक था. गायें, भैंसें और बकरियों के टोले घास चरते हर तरफ नज़र आते थे. एक अधेड़ उम्र का आदमी स्कूटर पर एक महिला को बिठाये स्टेडियम की ओर जाते नज़र आया तो मोहसिन ने मेरा कन्धा झंझोड़ मेरी तवज्जो चाही "देख देख." मैंने नज़र गड़ाते हुए कहा "पर ये लड़का नहीं है, कोई लेक्चरार मालूम पड़ता है." मोहसिन बेतक्कल्लुफ़ अंदाज़ में बोला "अरे कोई भी हो, जायेगा तोह उधर ही, करेगा तो वही ही." और ऐसा कहकर वह मेरा नेत्रित्व करने लगा, और मैं उसके पीछे पीछे चलने लगा. स्टेडियम के आस-पास की वायु दूषित थी. कूड़े कचरे की चादरें  स्टेडियम से लगकर दूर दूर तक फ़ैली थी . और स्टेडियम कूड़े कचरे का केंद्र. नीम के ऊंचे ऊंचे पेड़, जिसकी शाखाओं पर ना जाने क्यूँ मुझे सांप लिपटे नज़र आते थे. चन्द आवारा बिल्ले जबड़ों में कबूतर दबाये नज़र आ जाते. असहनीय बू के बाईस मेरी नाक सिकुड़ जाती और ललाट पर बल पड़े रहते. वहीँ मोहसिन के चेहरे पर खजाने की खोज-खपत समान जिज्ञासा मौजूद रहती. दो कदम आगे चलने वाला मोहसिन हातों से इशारे कर मुझे आगे बढ़ने के निर्देश दीया करता, और बड़ी सावधानी से बंकर तलाशता, जहाँ से हम पूरी गतिविधि पर नज़र रख सकते थे.
थोड़ा आगे बढ़े तो उस अधेड़ उम्र के आदमी का स्कूटर खड़ा नज़र आया, जो हूबहू मोहसिन के पीले रंग के प्रिया स्कूटर से मेल खता था. वही रंग, वही कम्पनी और स्टेपनी कवर पर छपा वही लक्खानी जूतों का इश्तिहार. "मोहसिन.. यार ये स्कूटर तो तेरे अब्बा का लगता है." मोहसिन, जो स्टेडियम की दीवार की आढ़ लेकर उस अधेड़ उम्र के आदमी और उस लड़की को देखने की कोशिश कर रहा था यकायक मुड़ा, और मेरी ओर दौड़कर आया और स्कूटर देखने लगा. अपने अब्बा का स्कूटर पाकर मोहसिन हक्का बक्का रह गया, और दौड़कर दीवार की ओर चला गया. उत्सुकता बढ़ गयी थी. मैं भी मोहसिन के पीछे पीछे दीवार की ओर लपका, और मोहसिन को ढाल बनाकर नज़ारा देखने लगा. मोहसिन फटी आँखों से अपने अब्बा को उस लड़की के कुर्ते के बटन खोलते देखने लगा. मुझे हसी आ रही थी, परन्तु मैंने ऐसा व्यक्त नहीं होने दीया , अन्यथा मोहसिन को और बुरा लगता. मारे शर्मिन्दगी के मोहसिन जार-जार रोने लगा. मैंने दुःख की अभिव्यक्ति प्रकट की और बोला "क्या करोगे मोहसिन?" मोहसिन, जिसकी आँखें आसुओं से लबालब भरी हुई थी एकाएक भागने लगा, और साइकिल पर सवार हो गायब हो गया. उसके अगले दिन मैं हफ़्ते भर के लिए अपने पिताजी के साथ जयपुर चला गया जहाँ वे कार्यरत थे. वापिस लौटा तो अपनी दादी से मालूम हुआ कि मोहसिन की अम्मी ने अपने खाविंद से तलाक़ ले लीया है, और मोहसिन के साथ वह अपने मैके सियालकोट चली गयी हैं.
आज तकरीबन २० वर्ष बाद मोहसिन के मुत्ताल्लिक सोचता हूँ तो यही राय कायम करता हूँ कि उसने अपने बाप की हरकत से ज़रूर नसीयत हासिल की होगी, और एक सच्चे आदमी की ज़िन्दगी बसर कर रहा होगा. या यह भी मुमकिन है कि वह भी अपने अब्बा के मुत्ताल्लिक शेह्वत का पिशाज हो.  

Thursday, December 16, 2010

सुंदर-सुडौल प्रड्यूसर साहब।

शाम की 9 बज रहे होंगे जब प्रड्यूसर साहब की ऑफिस में शिरकत हुई. पिछले दो माह से हमारा ऑफिस फ़ुरसत में है. वैसे तोह ज्यादातर छोटे बड़े सभी एडवरटाईसिंग प्रोडक्शन हाउसेस व्यस्त रहते हैं, परन्तु हमारा व्यापर प्रड्यूसर साहब की तीव्र बुद्धी  के बावजूद रेंगता रहता है. ऑफिस में प्रवेश करते ही वे सीधा डायेरेकटर्स रूम में दाखिल हुए, और पीयून द्वारा सभी मुलाज़िमो को अर्जेंट मीटिंग के लिए बुलवाया गया. पिछले दो महीने से ख़ाली बैठने के कारण हल्की होती तिजोरी की चिंता प्रड्यूसर साहब के चेहरे पर जाड़े की धुंध समान छाई हुई है. हात में पकडे एक पेन्सिल बॉक्स को तमाम मुलाज़िमो को दिखने हेतु ऊपर उठाते हुए कहने लगे " guys i hav called u in for a lilttle brain storming session.. ye pencil box jo aap dekh rahe hain ek nayi company hai which is soon going to be launched..owner is good friend of mine. he knows we are 15 years old in this business. so..he has asked me to launch a campaign plus marketing strategy, print & hoarding.... so!...dipali?"  (NID pass out - graphic designer )दिपाली जो अपने काम में मसरूफ प्रड्यूसर साहब की बात सुन नहीं पाती, तोह क्रोध से पीड़ित प्रड्यूसर साहब उसपर गरज पड़ते हैं.  "what is so important?...i want every one to pay attention when am talking do you understand that?...good... ok.. i need a research to be done..types of pencils, there uses, kind of material used." कचर! कचर! कचर! कचर! ........
निर्धारित समय पर हाज़िर कीये जाने वाले कार्य पर विराम दे  दिपाली ने इन्टरनेट पर दौड़ लगानी शुरू कर दी. प्रड्यूसर साहब उसे तब तक घूरते रहे जब तक उसने इन्टरनेट खोल साहब की फ़र्मान्बर्दारी शुरू ना कर दी. फिर सारे शेष मुलाज़िमों से मुखातिब हुए और कहने लगे..."common guys...i need some ideas....nikhil?"  निखिल (struggling & only in house director which our company possess) अपने सरपरस्त की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था जब उस्सी सरपरस्त ने उसे आज़मा डाला...."what do you think how can we sell it magnificently?" nikhil: "sparsh i think we should definitely do this & ... definitely some thing with stop motion..awesome graphics .. setting a color palate..with some elegant foregrounding backgrounding" डायेरेक्टर द्वारा दिए गए सुझाव शायद प्रड्यूसर साहब को पसंद नहीं आए और वे दिपाली पर दुबारा गरज पड़े.  "dipali what is taking you so long...no leave it fuckit....who can find the types of pencils..the data which is very well there on internet. i cant fukin waist my life for such a stupid information... who'll do this, i have 5 minutes" सआदत सभी मुलाज़िम हात पीछे बांधे बेपरवाह सर झुकाए खड़े थे, जब प्रड्यूसर साहब की नज़रें बारी-बारी हर मुलाज़िम की जुल्फों से मुख़ातिब हुई. सबसे आखिर में मैं खड़ा था, एवं कन्खनियों से दिपाली की ओर देख उससे गुफ्तगू करने की कोशिश कर रहा था. अभी चार पल बाद ही मेरी नज़रें प्रड्यूसर साहब से मुख़ातिब होंगी इसका मुझे इल्म था. चुनांचे फटाफट एक दो इशारे दिपाली की तरफ कर मैंने तवज्जो प्रड्यूसर साहब की जानिब करदी. और चेहरे पर वो तेज प्रकट कीया की साहब ने कहा.."shirish can you do it?...five minutes.." में संजिदगी से सर हिला डायेरेकटर्स रूम के बहार निकल प्रोडक्शन रूम में आया और इन्टरनेट खोल फ़र्मान्बर्दारी में मसरूफ हो गया. 'बड़े ग़ुलाम अली खान साहिब' की आवाज़ सुनते सुनते मैंने चट चट दो-चार प्रिंट के कमांड दीए. गुलाम xerox मशीन आदेश पर चौंक चमक उठी और सटा-सट चार पन्ने छाप कर हाज़िर कर दीए. और में प्रड्यूसर साहब के समक्ष हाज़िर हो गया.  डायेरेकटर्स रूम में दाखिल होते ही मैं संजीदा हो गया और मुस्कुराहट चेहरे से छू. deep research साहब को सौंप दी. दो चार अर्क पलटने के बाद उन्होंने मुझे साबशी दी. भीतर तर्क-वितरकों और आइडियास का सिलसिला जारी था. कमअज़कम पंद्रह-बीस मिनट प्रड्यूसर साहब और डायेरेक्टर के परस्पर सुझावों को लेकर हो रही चर्चा हमारे कानो में लोरियों की तरह भन्नाती रही, और हम खड़े खड़े ऊंघते रहे.
चर्चा कुछ नतीजों पर पहुंची. साहब ने कुछ-कुछ काम कुछ-कुछ लोगों को सौंप दीए, और नतीजों की फ़र्मान्बर्दारी की प्रगति पर चर्चा की तारीख़ तय की. समापन समारोह के चंद प्रेरनादायी शब्द कहकर प्रड्यूसर साहब मीटिंग से फ़ारिग हो गए. और कुछ क्षणों बाद ऑफिस से भी.  मुझे कंपनी का/मेरा भविश्य उज्जवल महसूस होने लगा. प्रड्यूसर साहब की इस मीटिंग के बाद हमारी कंपनी ने  प्रोडक्शन हाउस के साथ-साथ एडवरटाईसिंग एजेंसी का भी मयीय्यार हासिल कर लीया था.  थोड़े ही दिनों बाद काम आ गया और सभी जन मसरूफ हो गए. फिर फ़ुरसत से बैठे फिर मसरूफ. परन्तु उस दिन के बाद दुबारा उस 'पेंसिल कंपनी के मुताल्लिक़ कोई चर्चा ना हुई. फ़ुरसत में मीटिंगें होती परन्तु हर बार महकमें मुक्तलिफ़ होते. लगभग मुलाज़िम जा चुके थे. प्रोडक्शन रूम में रखी वर्ल्ड क्लॉक भारत के हिस्से में दस बजा रही थी जब में अपना साजो-सामान समेट फ़ारिग होने लगा.

ऑफिस से बाहर निकला तो कुत्तों के भौंकने की आवाजें आने लगी. एक झबरी कुतिया दुम हिलाते हुए दो कुत्तों से अपनी आबरूह बचा चली जा रही है. कद में कम, परन्तु हष्ट-पुष्ट सुंदर-सुडौल आवारा कुत्ता अपने प्रतिद्वंदी कुत्ते पर गुर्रा रहा है. प्रतिद्वंदी कुत्ते के मिलन आसार उस कुतिया के साथ ज्यादा हैं. शायद वैसा ही कुछ महसूस कर सुंदर-सुडौल कुत्ता विरोध करने लगा. लगातार होते विरोध से तंग झबरी कुतिया एवं प्रतिद्वंदी कुत्ता संग भागने लगे, तथा सुंदर-सुडौल कुत्ते की नज़रों से एकाएक ओझल हो गए. इस कुकूर जोड़े का भाग निकलने का काम आसान उस लौरी ने कर दीया था जो मेन गेट से कालोनी के भीतर चली आ रही थी. सुंदर-सुडौल कुत्ता पग्लाने लगा. अजीबोग़रीब ध्वनियाँ निकाल सड़क पर लोटने लगा. आते जाते दुपहिया वाहनों के पीछे भागने-भौंकने  लगा. कॉलोनी की सीधी सड़क मैंने आधी नापी होगी जब सुंदर-सुडौल कुत्ता मेरे पीछे से भागता हुआ आगे निकल गया. आहट सुनकर मैंने अपना लैपटॉप बैग ताना, और पलटकर मारने के लिए तैय्यार हुआ उससे पहले ही वह मुझ से पार हो मेरी कन्खनियों से ओझल हो गया. लैपटॉप बैग कन्धों पर डाल में चलने लगा. कॉलोनी के मेन गेट पर खड़ा सुंदर-सुडौल कुत्ता सामने वाली मेन रोड की तरफ रुख कर बेतहाशा भौंकेने लगा. लाल सिग्नल के बाईस सड़क पर गाड़ियों की लम्बी कतार थी. दूसरी तरफ से गाड़ियाँ हवा से बातें करती दौड़े जा रही थी. मुझे उस सुंदर-सुडौल कुत्ते की ज़िन्दगी से यकायक दिलचस्पी पैदा हुई. मैंने देखा कि सड़क के उस पार, सिग्नल के पास झबरी कुतिया व प्रतिद्वंदी कुत्ते के बीच आग बराबर लगी हुई है. दूर से विरोध होते देख कुकूर जोड़े ने अपनी गतिविधि पर विराम दीया, और दूर निकल गए. दुबारा कुकूर जोड़े के ओझल हो जाने पर सुंदर-सुडौल कुत्ता अजीब-अजीब आवाजें निकालने लगा, और सड़क पर लोटने लगा.
मैं मेन गेट से बाहर निकलकर सड़क पर आया और रिक्शा रुकवाने हेतु हात आढ़ा कर खड़ा हो गया. पलटकर देखा तो कॉलोनी का चौकीदार उस सुंदर-सुडौल कुत्ते पर लाठीयाँ बरसा रहा था, तथा अपना कम्बल उसके दांतों से छुड़वाने की जद्दोजहद कर रहा था.

Monday, December 13, 2010

बगैर उन्वान के।

मुझे मौत से डर लगता है, और ज़िन्दगी गोया ईशवर रचित पहेली. जिसे हल करने के लिए इस पहेली रुपी इम्तेहान सूची में हर उस शख्स का नाम दर्ज है जिसने धरती पर जन्म लीया है. गर मृत्यु ही शास्वत सत्य है तोह वह आखिर क्या परिणाम / फल/ रोशनी है जो हमे यह पहेली हल करने पर नसीब होगी, वह क्या है  जिससे ईशवर हमे मुखातिब करवाने पर आमागा है?... धन? ..या राज पाठ?...या  नाम? या.....ढेरों चहीते रिश्तेदार जो आपके नाम पैसे के कायल हैं. मुझे मौत से डर लगता है, और ज़िन्दगी गोया ईशवर रचित पहेली.
मुझे ईशवर से सक्त इर्षा है. जहाँ हम इस कमियाबी-नाकमियाबी, भाव-आभाव, प्रेम-घृणा, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु रुपी देहलीज़ पर खड़े जून्जते रहते  हैं, वहीँ वह कहीं हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों में तितलियाँ पकड़ उन्हें उड़ा देता होगा और फिर पकड़ता होगा फिर उड़ाता होगा.

Saturday, December 11, 2010

आसाब पर सवार औरत

हबूदे -आदम से ही औरत आदमी के आसाब पर सवार रही है. रोम राज्यकाल के दौरान आदमी वक़्त बे वक़्त किसी  भी औरत को अपनी शेह्वत का शिकार बना सकता था. उस समय ऐसा फैसला लीया गया कि गर कोई भी मर्द किसी भी औरत से जिस्मानी ताल्लुकात रखना चाहता है तोह उसे उसकी कीमत अदा करनी पड़ेगी. इस तरह औरत के हकों को सुरक्षित कीया गया और उन्हें शोषण से भी बचाया गया. इस्मतफरोशी सबसे प्राचीन पेशा है. आज भी औरत आदमी के आसाब पर उतनी ही सक्रीय तौर से छाई हुई है. फर्क  सिर्फ इतना है की आज अधिकतर आदम चखले कोठों के नाम से तौबा करतें हैं और मोहब्बत -दीवानगी का दावा. और फिर  उसी एहसास के आगोश में, मासूमियत का चोगा ओढ़े  मंज़िले-शेह्वत तक पहुचंते हैं जिसे वे मोहब्बत समझते हैं.
"रूहानी मोहब्बत", यह हर्फ़ मैंने हसन मंटो साहब की एक कहानी से इख़्तियार कीया है. वाकई बेहद खूबसूरत शब्द . जैसे आदमी का  प्रत्यक्ष रूप से होना  महत्त्व रखता ही न हो. गोया आफताब की रौशनी सा, जिसे हम छू नहीं सकते, चूम नहीं सकते, अपने आगोश में  ले इज़हार नहीं कर सकते, परन्तु उसका प्रकाश जो हमे सदेव बल देता है, बेनज़री  को नज़र करता, अँधेरे से निजात दिलाता है हूबहू उस रूहानी मोहब्बत के समान है जहाँ औरत/आदमी का प्रत्यक्ष रूप से मौजूद होना ज़रूरी नहीं.

Monday, April 19, 2010

shikariyon ki sangeet sabha...

 शिकारियों की संगीत सभा.

पिछली   दफा सर्दीयों  की छुट्टियों में जोधपुर जाना हुआ. असहनीय ठण्ड एंव रम की बोतलों  के सहारे  दिन मज़े  से कट रहे थे. शाम पड़ी और नेक कार्य में मशरूफ  होने  की घडी आयी.    सभी दोस्त घर  की छत पर, चारपाइयों  पर बैठ  यहाँ वहां की अक्र्र बकर के साथ-साथ मौसम एंव मदिरा का लुत्फ़ उठा  रहे थे. हर एक उपभोगता ने  करीबन तीन चार पेग डाउन कीये होंगे,  जब   वीर (विराजमान मित्रों  में से एक मित्र ) अपने बचपन की एक  (हास्य विडम्बना भरी)  कहानी सुनाने लगा.
कहने  लगा कि, जब वह १२ साल का था, तो   दूसरी  दफा उसे पिताजी के साथ  शिकार पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. वीर बहुत खुश, सुबह से करीबन १५-१६ दफा  अपने पिताजी से यह कह चुका था   कि- उसे बन्दूक चलाने   एंव जंगली सूअर के शिकार में भागीदार बनने का मौका दिया जाये. अगर पिताजी के किसी दोस्त ने उसे  बच्चा  समझ आनाकानी की, या  पिछली बार की तरह अगर किसी ने  उसकी बांह  पकड़ कर उसे जीप में बिठा दिया,  तो  अच्छा  नहीं होगा... पिताजी ने मुस्कुराते हुए वीरू की  तमाम शर्तों पर हाँ भर दी, तथा कहने लगे कि , दुपहर में  अरावली के जंगलों की ओर रवानगी की जाएगी, साथ में हरी सिंह मामोसा (veer's uncle ) भी तशरीफ़ ला रहे है.
शाम ढल चुकी है ,जंगल के बीचों बीच सारे महानुभाव  शत्रंजियाँ बिछाकर विराजमान हैं, तथा शिकार हेतु  लायी हुई अपनी-अपनी बंदूकें बगल में रखकर, (बहादुरों ने) हातों में जाम पकडे हुए हैं. वीर अपने पिताजी की गोद में बैठ,  बड़े बड़े तीरंदारों को शिकार के तौर तरीकों पर (केवल) टिपण्णीयां करते हुए सुन रहा है. जंगल  में आये हुए  अब ४ घंटे बीत चुके हैं, और शिकार करना तो दूर,   उसके नाम तक  का कोई ज़िक्र नहीं. बोत्त्लों पर खाली होती बोत्त्लें , ठहाकेदार मिजाज़ और पूर्वजों की गौरवशील गाथा. वीर की शिकार इच्छा  दूसरी दफा खंडित होती नज़र आ रही  थी.  
बेटे द्वारा  बार-बार शिकार  अनुरोध पर, नशे में धुत पिताजी ने बन्दूक उठाकर वीर को दे दी,  तथा अपने साले साहब से कहने लगे  "अरे सुंनो तो,.... एक आधा खरगोश मरवा लाओ,कम से कम  इसे तस्सल्ली हो जाएगी ..कब से माथे की रेल कर रखी है इसने" पिताजी के इस  कथन से वीर के चेहरे पर  मुस्कुराहट आ गयी .  पिताजी की गोद से उठकर वह मामोसा की ओर बढ़ने लगा. .
मामोसा खुद नशे में धुत हैं, तथा बेसब्र व्यक्तित्व से  जीप में कुछ ढून्ढ रहे हैं.  अपने कद से भी लम्बी बन्दूक हात में पकडे हुए वीर हरी सिंह मामोसा के समीप बढ़ रहा  है,  तथा पिताजी द्वारा दिए गए आदेश को दोहरा रहा  है. मामोसा बहुत परेशां हैं, तथा   भांजे   से थोडा वक़्त  दे देने के लिए दरख्वास्त करतें हैं.  वीर  जीप में बैठकर  अपने मामाश्री को कुछ ढून्ढते हुए देख रहा  है .  हरि सिंह मामोसा की तलाश खत्म होती है, तथा  हात में एक पुराना केसेट लिए हुए वे  विराजमान महानुभावों  की तरफ हर्षोल्लास से बढने लगते हैं. महानुभावों को केसेट दिखाते हुए मामोसा (बलुन्दा ठाकर साहब की)   जीप की  तरफ बढतें लगते  हैं.  केसेट टेपरेकार्डर  में डाल दी जाती है, और फरीदा खानुम जी का गया हुआ गाना "आज जाने की जिद न करो" शुरू होता है. 
तमाम  शिकारी  संगीत पर मदमस्त हो रहे है.
करीबन चालीस दफा उस्सी गाने  को  सुना जा चूका है, एवं शराब भी ख़त्म होने को आयी है. स्तिथि ऐसी हो गयी थी कि- गलती से गर  जंगली सूअर  करीब से  भाग जाये, तो  भी शिकार   या   उसकी इच्छा  को ज़ाहिर करने वाला एक भी शिकारी  नहीं . और अगर भूले भटके कोई व्यक्ति शिकार की याद दिलाये तो, बहूमत शिकारी आखिरी बार फरीदा खानुम की आवाज़ सुनने की इच्छा ज़ाहिर कर , मसले को दबा देवे.
शिकार योजना से  तब्दील हुई  इस  संगीत सभा में, भले ही  सारा दोष शराब का हो, परन्तु  इस बात में कोई दोहराय नहीं कि उस रात जरूर ऊपर वाला उन जंगली जीवों पर मेहरबान रहा  होगा . :-/

Tuesday, December 29, 2009